ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
बिहार
की राजनीति में चुनाव का मौसम आते ही वादों और घोषणाओं की बाढ़ आ जाती है। हर पार्टी
जनता को लुभाने के लिए अपने तरकश से सबसे आकर्षक तीर निकालने की कोशिश करती है। इसी
कड़ी में, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने
एक ऐसा चुनावी दांव खेला है, जिसने सत्ताधारी एनडीए (NDA) खेमे में हलचल मचा दी है।
बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेजस्वी ने ऐलान किया कि अगर उनकी सरकार बनती है,
तो 'जीविका दीदियों' को स्थायी नौकरी दी जाएगी और उनका वेतन सीधे 30,000 रुपये प्रति
माह कर दिया जाएगा [1]। यह घोषणा सिर्फ एक वादा नहीं, बल्कि बिहार के लाखों परिवारों
से सीधे जुड़ने की एक सोची-समझी रणनीति है।
कौन
हैं 'जीविका दीदियां' और क्यों हैं वे इतनी महत्वपूर्ण?
बिहार की राजनीति को समझने के लिए 'जीविका दीदियों' के महत्व को समझना बहुत ज़रूरी है। 'जीविका' बिहार सरकार की एक ग्रामीण आजीविका परियोजना है, जिसके तहत स्वयं-सहायता समूहों का एक विशाल नेटवर्क बनाया गया है। इस नेटवर्क से 1 करोड़ से ज़्यादा महिलाएं जुड़ी हुई हैं, जिन्हें 'जीविका दीदी' कहा जाता है। ये महिलाएं छोटे-छोटे कर्ज़ लेकर अपना काम शुरू करती हैं और आत्मनिर्भर बनती हैं। ज़मीनी स्तर पर, खासकर ग्रामीण इलाकों में, जीविका दीदियों का एक बहुत बड़ा प्रभाव है। वे न केवल आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी जागरूक हैं। किसी भी राजनीतिक दल के लिए यह एक बहुत बड़ा और संगठित वोट बैंक है। तेजस्वी यादव ने इन्हीं जीविका दीदियों के सबसे बड़े दुखती रग पर हाथ रखा है - अस्थायी रोज़गार और कम मानदेय।
तेजस्वी के वादों में क्या है खास?
तेजस्वी यादव ने सिर्फ जीविका दीदियों को ही नहीं, बल्कि प्रदेश के सभी संविदाकर्मियों (कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स) को भी स्थायी करने का वादा किया है [1]। यह एक बहुत बड़ा कदम है, क्योंकि बिहार में लाखों लोग अलग-अलग सरकारी विभागों में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं और हमेशा अपनी नौकरी की असुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं।
तेजस्वी की घोषणा के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
स्थायी
नौकरी: 'जीविका दीदियों' (कम्युनिटी मोबिलाइज़र) को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाएगा।
वेतन
में भारी बढ़ोतरी: उनका वेतन 30,000 रुपये प्रति माह किया जाएगा, जो उनके मौजूदा मानदेय
से कई गुना ज़्यादा है।
कर्ज़
माफ़ी: जीविका दीदियों द्वारा लिए गए लोन का ब्याज माफ किया जाएगा।
बीमा
सुरक्षा: पांच लाख रुपये तक का बीमा करवाया जाएगा।
'माई
बहिन मान' योजना: इस योजना के तहत महिलाओं को 2500 रुपये दिए जाएंगे, जो कोई लोन नहीं
होगा।
'MAA'
योजना: सरकार बनने पर 'MAA' (मकान, अन्न, आमदनी) योजना लाई जाएगी।
इन घोषणाओं के माध्यम से तेजस्वी ने सीधे तौर पर गरीबी, बेरोज़गारी और पलायन जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश की है। उन्होंने डबल इंजन सरकार पर भ्रष्टाचार और अपराध को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी सरकार बनते ही 20 दिनों के अंदर हर घर में एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने के लिए कानून बनाया जाएगा [1]।
क्या यह NDA के लिए एक बड़ी चुनौती है?
तेजस्वी का यह ऐलान निश्चित रूप से NDA के लिए एक बड़ी चुनौती है। नीतीश कुमार की सरकार ने 'जीविका' मॉडल को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक के रूप में प्रस्तुत किया है। लेकिन तेजस्वी ने उसी मॉडल की कमियों, यानी कम वेतन और शोषण को अपना सबसे बड़ा हथियार बना लिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि NDA सरकार ने उनकी घोषणाओं की नकल की है और 'माई बहिन मान' योजना के जवाब में महिलाओं को 10,000 रुपये "रिश्वत" के तौर पर दिए [1]।
तेजस्वी का यह कहना कि "तेजस्वी जो कहता है, वह करता है," उनके आत्मविश्वास को दिखाता है। वह 2020 के विधानसभा चुनाव में 10 लाख नौकरियों के वादे के साथ मैदान में उतरे थे और उनकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इस बार उन्होंने उस वादे को और आगे बढ़ाते हुए हर घर में एक सरकारी नौकरी की बात कही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि NDA इस घोषणा का जवाब कैसे देती है। क्या वे भी वेतन बढ़ाने या स्थायी करने का कोई পাল্টা वादा करेंगे, या फिर तेजस्वी के वादों को "अव्यावहारिक" बताकर खारिज कर देंगे?
कुल मिलाकर, तेजस्वी यादव ने बिहार के चुनावी दंगल में एक बहुत ही मज़बूत तुरुप का इक्का चल दिया है। यह घोषणा न केवल लाखों जीविका दीदियों और संविदाकर्मियों को प्रभावित करेगी, बल्कि उनके परिवारों के वोटों को भी RJD की तरफ खींच सकती है। अब गेंद NDA के पाले में है और बिहार की जनता यह देखने का इंतज़ार कर रही है कि इस चुनावी वादे की लड़ाई में कौन किस पर भारी पड़ता है।
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